।। दोहा ।।
कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई।
नैनूं रमैया रमि रहा दूजा कहाँ समाई ॥
कबीर सीप समंद की, रटे पियास पियास ।
समुदहि तिनका करि गिने, स्वाति बूँद की आस ॥
।। वायक आया वो गुरुदेव ।।
वायक आया वो गुरुदेव रा रे ,
रूपा बाई जमले पधारो रे ।
केम करे ने गुरु आविया रे री ,
रूपा रावल माल धागे वो रे हां ।
निंद्रा मंगावा ,सारा हेर री रे ।
ढोलिये सापडला ,ओढ़ाया ये हां । २
इतरो करे ने , रूपा हालिया रे ,
आया रिखयो रे , घर माई रे हां । २
सब रे संता ने ,रामा राम जी रे ,
मारा गुरु जी ने , गणी खम्मा रे हा। २
हाथ जोडिने रूपा बोलिया रे ,
हे गुरु मारी , मोजड़ियो रानी रे।२
बतिया बुजाणों , थारा हेर री रे ,
नुगरा सुता रावल माल जागे हो। २
सांकड़ी सेरी में ,सामे आविया रे। २
रूपा रावल माल धागे वो २
हाथ जोडि ने , रूपा बोलिया रे।
थारे फूल बीणवा , गई रे हा। २
रावल माल देव जी , बोलिया रे ,
रानी सा फूल कठा सु लाया रे हा। २
पहेली बाड़ी रे , गढ़ रे डुँगरे रे,
दूजी बैकुण्ठा , माई रे हा।
तीजी वाडी ,सारा सेर में रे ,
चौथी वाड़ी रे , स्वर्गा माई रे हां।
पेहलो मारो रे , मोबी दिकरो रे,
दूजो हंसा वालो घोड़ो रे हा।
तीजो मारो रे , गव रो बाछड़ो रे,
चौथी चंद्रावल राणी रे हा।
इतरो करी ने ,रूपा आवज्यो रे ,
पछे थाने पन्थडलो बतावा रे हां।
हाथ जोड़ ने रूपा बोलिया रे ,
मारा अमरपुर वासो रे हा।
वायक आया वो गुरुदेव रा रे ,
रूपा बाई जमले पधारो रे ।